डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड: पहचानें, बचाव करें और दूसरों को भी जागरूक करें

डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड: विस्तृत परिचय
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड एक जालसाजी (cyber fraud) की नई शैली है जिसमें अपराधी स्वयं को पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारियों का रूप धारण करके पीड़ित को डराते हैं। वे कॉल या वीडियो कॉल पर कहते हैं कि आपके खिलाफ कोई बड़ा अपराधीकरण चल रहा है, आपका नाम किसी धन शोधन (money laundering) या काले धन की जांच में आया है, और आपको “डिजिटल गिरफ्तारी” की धमकी देते हैं। फिर पैसों या संवेदनशील जानकारियों की मांग करते हैं। ध्यान रखने की बात यह है कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई कानूनी प्रक्रिया भारतीय कानून में मौजूद नहीं हैindiatoday.in। फिर भी बहुत से भोले-भाले लोग इस चाल में फंस जाते हैं और बड़े पैमाने पर ठगी का शिकार हो जाते हैं।
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड की खास बात यह है कि इसमें अपराधी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रियल टाइम वीडियो कॉल या मैसेजिंग ऐप जैसे व्हाट्सएप का उपयोग करते हैं। इसके चलते यह स्कैम आम फोन कॉल से भी ज्यादा प्रामाणिक (credible) दिखता है। फ्रॉड करने वाले कहते हैं कि आपके मोबाइल नंबर का दुरुपयोग हो रहा है, आपने बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग की है, और पुलिस/सीबीआई/ईडी आपको गिरफ्तार करने वाले हैं। फिर पीड़ित को डराने-धमकाने के बाद उसे पैसा ट्रांसफर करने या बैंक खाते की जानकारी देने पर मजबूर किया जाता हैhindustantimes.comindiatoday.in।
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के शुरुआती लक्षणों में शामिल है: खतरों भरी भाषा (जैसे “आपको कल पुलिस बुलाएगी”, या “आपके बच्चों को भी गिरफ्तार करेंगे”), काल्पनिक कथाएं (जैसे कोई अंतरराष्ट्रीय जालसाज़ गिरफ्तार हो गया, उसमें आपके नाम का ज़िक्र है), और पीड़ित को कमरे के 360-डिग्री कैमरा से दिखाने को कहना कि कोई और आसपास न होhindustantimes.com। अक्सर अपराधी झूठे दस्तावेज (नकली कोर्ट ऑर्डर या जांच रिपोर्ट) दिखाकर अपना भरोसा बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इन सब ट्रिक का मकसद पीड़ित में पैनिक (panic) पैदा करना है ताकि वह जल्दबाजी में पैसा भेज दे या कोई भी क़दम उठाने से पहले सोचे नाhindustantimes.com।
कैसे अपराधी फंसाते हैं (साइकोलॉजिकल ट्रिक्स)
अपराधी अपनी बात को यकीनी बनाने के लिए कई मनोवैज्ञानिक (psychological) दांव-पेच लगाते हैं। वे फोन पर खुद को पुलिस अधिकारी, सीबीआई/ईडी अफसर, या दूरसंचार नियामक (TRAI) के कर्मचारी बता सकते हैंhindustantimes.com। शुरुआत में वे साधारण टोन में बात करके थोड़ी बहस-कहराम करते हैं ताकि विश्वास कायम हो। फिर अचानक उच्च श्रेणी के अधिकारियों से जोड़ देते हैं। उदाहरण के लिए, एक केस में कॉल करने वाले ने पहले “एसआई रोशन” का वीडियो काल किया, दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम का प्रोफाइल पिक्चर दिखाया, फिर “एकाउंट टाइटलिंग” के नाम पर कागज़ दिखाकर इंस्पेक्टर बनने का नाटक रचाhindustantimes.com।
अपराधी कई स्तर की धमकियाँ देते हैं। कभी बताते हैं कि पीड़ित का नाम बड़े काण्ड से जुड़ गया है (जैसे “नवाब मलिक के लॉन्ड्रिंग काण्ड”hindustantimes.com), तो कभी कहते हैं कि पीड़ित के घर में ड्रग्स या फॉरेन करेंसी मिली हैindiatoday.in। इस तरह वे पीड़ित के डर को भड़काते हैं और कहते हैं कि “डिजिटल गिरफ्तारी” प्रक्रिया में रहकर सहयोग करें। “डिजिटल गिरफ्तारी” में वे पीड़ित को अलग-थलग रखने की सलाह देते हैं, कभी कमरे का 360° कैमरा दिखाने को कहते हैं तो कभी घर के किसी विशेषज्ञ आइडेंटिफायर को दिखाने की मांग करते हैंhindustantimes.com।
क्रिमिनल अक्सर सहानुभूति जगा कर भी फंसाते हैं। उदाहरण के लिए, एक घटना में दो बेटों की मृत्यु का जिक्र करके एक 82 वर्षीय रिटायर्ड कर्नल और उनकी पत्नी को डिजिटल अरेस्ट में रखा गया और 10 दिन तक घर के अंदर रहने को कहा गयाaajtak.in। फिर हथियारे के रूप में उन्होंने एक फर्जी सुप्रीम कोर्ट ऑर्डर भेजा कि उनके फंड वैध हैं, जिससे भरोसा और बढ़ाया गयाlivehindustan.com। इसी तरह पीड़ित को यह दिखाने के लिए प्रेरित किया जाता है कि अधिकारी उसके पक्ष में हैं। आखिर में वे अच्छी तिजोरी की तरह पैसे निकालने पर विस्वास बढ़ाने के लिए कहते हैं कि पैसे ट्रांसफर करें, “छह घंटे में आपके खाते में वापस कर दिए जाएंगे” और सहयोग के लिए पुरस्कार (awards) मिलने का झांसा भी देते हैंhindustantimes.com।
अपराधियों द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्य तकनीकें
- आधिकारिक पहचान से धोखा: अपराधी खुद को सरकारी एजेंसियों (पुलिस, सीबीआई, एनसीबी, ईडी, आदि) या बैंकों (RBI) का कर्मचारी बता देते हैं। उदाहरण के लिए, एक केस में ठगों ने खुद को “मुंबई क्राइम ब्रांच” का ऑफिसर बताया और नकली बैकग्राउंड में पुलिस स्टेशन दिखाकर राज़़ बांटाindiatoday.in।
- स्पूफ कॉल: अक्सर कॉल विदेशी नंबर (जैसे म्यांमार, लाओस) से आती है, लेकिन भारतीय नंबर दिखती है। सरकार ने ऐसे अंतरराष्ट्रीय स्पूफ कॉल्स पर नकेल कसने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को दिशा-निर्देश दिए हैंpib.gov.in।
- वीडियो कॉल एवं स्क्रीन शेयरिंग: अपराधी WhatsApp वीडियो कॉल पर आते हैं, नकली पुलिस स्टेशन या ईडी ऑफिसर की तस्वीर दिखाते हैं। कभी वे स्क्रीन पर नकली दस्तावेज़ दिखाकर पीड़ित से कंप्लेंट लिखने को कह देते हैंhindustantimes.com।
- घबराहट पैदा करना: “आपके खिलाफ में ऐसी रिपोर्ट आई है…” जैसी तात्कालिक धमकी देकर पीड़ित को घबरा देते हैं। “आपका नंबर कल ब्लॉक हो जाएगा” या “अब तक इस केस में एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली” जैसी जानकारियाँ देते हैं ताकि डर बढ़ेindiatoday.inhindustantimes.com।
- वित्तीय जानकारी मांगना: फिर धीरे-धीरे बैंक डिटेल्स, आधार नंबर, OTP आदि पूछते हैं। पीड़ित को कहते हैं कि नकद रकम अपने खाते में ट्रांसफर करें या फिक्स्ड डिपॉजिट निकाले और ट्रांसफर करके रसीद दिखाएँhindustantimes.comindiatoday.in।
- झूठा भरोसा: कई केसों में अपराधी “रिलीज़ ऑर्डर” देने या पुराने निवेश को कानूनन मान्यता देने का दिखावा करते हैं, जैसे नकली सुप्रीम कोर्ट के आदेश भेजना कि “आप सब क्लियर हैं”livehindustan.com। इसके बाद भी जब पैसा वापस नहीं आता, तब पीड़ित समझ जाता है कि ठगी हो गई है।
असली जीवन केस स्टडीज़
देश भर में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जो डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के भयावह परिणाम दिखाते हैं। यहां पाँच प्रमुख केस दिए गए हैं:
- 83 लाख की ठगी (चंडीगढ़): पैंजकुला के 85 वर्षीय रिटायर्ड मेजर जनरल प्रभोद चंद्र पुरी को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर ₹83 लाख से अधिक का चूना लगाया गयाhindustantimes.com। उनसे कहा गया कि उनका मोबाइल नंबर वेस्ट दिल्ली में किसी अपराध में इस्तेमाल हो रहा है। साइबर सेल के एक अधिकारी बने ठगों ने वीडियो कॉल पर उनसे पत्नी के खाते से फंड निकालकर भेजने को कहाhindustantimes.com। पुलिस ने इस मामले में फर्जीवाड़ा दर्ज किया है।
- 1.94 करोड़ की ठगी (मुंबई): 68 साल के एक बुजुर्ग को नकली व्हाट्सएप वीडियो कॉल में यह बताया गया कि वह नरेश गोयल के मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंस गया हैindiatoday.inindiatoday.in। अपराधियों ने उसे दो-तीन दिन तक घर में अलग रखकर डराया और धमकाया। अंत में उन्होंने पीड़ित से तीन अलग-अलग ट्रांज़ैक्शन में कुल ₹1.94 करोड़ निकालवा लिए। जब पीड़ित ने अपनी बेटी को सारी बात बताई, तब जाकर यह फ्रॉड सामने आया और मामला साइबर पुलिस को सौंपा गयाindiatoday.in।
- 20.25 करोड़ की ठगी (मुंबई): 86 वर्षीय एक महिला को साइबर अपराधियों ने 68 दिन तक “डिजिटल अरेस्ट” में रखा और उससे करीब ₹20.25 करोड़ ठग लिएnavbharattimes.indiatimes.comnavbharattimes.indiatimes.com। अपराधियों ने बताया कि उनके आधार से एक फर्जी बैंक अकाउंट में भारी मनी लॉन्ड्रिंग हुई हैnavbharattimes.indiatimes.com। महिला से कई किस्तों में पैसा जमा करवाया गया। इन्हें “भारत का अब तक का सबसे लंबा डिजिटल अरेस्ट स्कैम” कहा जा रहा हैnavbharattimes.indiatimes.comnavbharattimes.indiatimes.com।
- 3 करोड़ की ठगी (नोएडा): आरबीआई (Reserve Bank of India) में रिटायर्ड 78 वर्षीय अधिकारी विरज कुमार सरकार और उनकी पत्नी को 15 दिन तक डिजिटल अरेस्ट में रखा गया। ठगों ने उन्हें CBI और ED का डर दिखाया, और कहा कि यह मनी लॉन्ड्रिंग केस हैlivehindustan.com। सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश भेजे कि उनके फंड वैध हैंlivehindustan.com। इस दौरान दोनों से कुल ₹3 करोड़ की रकम ठग ली गईlivehindustan.com। पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है।
- 3.4 करोड़ की ठगी (चंडीगढ़): चंडीगढ़ में 82 वर्षीय सेवानिवृत्त कर्नल दलीप सिंह और उनकी पत्नी (74) को ईडी के नाम पर कॉल कर डराया गया। आरोप लगाया गया कि वे 5038 करोड़ के घोटाले में शामिल हैंaajtak.in। ठगों ने दंपती को 10 दिन तक घर में कैद किया और कहा कोई किसी से संपर्क न करे। इस दौरान उन्होंने दंपती से उनके बैंक खातों से ₹3.4 करोड़ ट्रांसफर करवाएaajtak.inaajtak.in। पुलिस ने शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर पुलिस कार्रवाई शुरू कर दी है।
इन सभी मामलों में पीड़ित बुजुर्ग थे या वरिष्ठ नागरिक, जिन्हें अपराधियों ने मानसिक रूप से कमजोर करके शिकार बनाया। इनके माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड कितनी चालाकी से किया जाता है और कितना बड़ा नुकसान हो सकता है।
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के सामान्य तरीके और तकनीकें
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड में अपराधी कई तरह की तकनीकें अपनाते हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- कॉल सेंटर ऑपरेशन: अपराधी एक कॉल सेंटर चलाते हैं, जहां से कई कॉल एक साथ पड़ती हैं। पहले TRAI या पुलिस का रूप दिखाया जाता है, फिर ठगों का अलग-अलग तांडव होता हैhindustantimes.com।
- अधिकारियों की पोशाक: वीडियो कॉल पर पैदल या डिजिटल यूनिफॉर्म पहने बैठे दिखते हैं। उन्हें सीनियर्स से जोड़ा जाता है (जैसे एसपी, डीसीपी) ताकि विश्वास बढ़ेhindustantimes.com।
- नकली दस्तावेज: अपराधी चलते-फिरते सुप्रीम कोर्ट या रेलवे पुलिस का फ़ॉर्म दिखा देते हैं या अपनी झूठी रिपोर्ट संभालकर रखते हैंhindustantimes.com।
- अभियान और विज्ञापन: सरकार-आधिकारिक नोटिस जैसा दिखने वाला विज्ञापन या ईमेल भेजा जाता है, जिसमें फोन करने को कहा जाए। कभी-कभी टेलीविजन पर भी छिपे-छिपाए कानूनी शब्दों का प्रसारण किया जाता है, जिससे आम व्यक्ति डर जाता है।
- सोशल इंजीनियरिंग: पीड़ित की निजी जानकारियाँ जैसे परिवार के सदस्यों के नाम, संपत्ति आदि पहले से जुटा रखी जाती हैं। इससे बातों में यकीन पैदा किया जाता है। कभी-कभी अपराधी सोशल मीडिया या डेटिंग ऐप्स पर संबंध जोड़कर पहले ही भरोसा बना लेते हैं (जैसा 65 वर्षीय महिला केस में हुआhindustantimes.comhindustantimes.com)।
- फर्जी संस्थाएँ: डिजिटल अरेस्ट के अलावा अपराधी अन्य फ्रॉड स्कीम (जैसे FEDEX पार्सल स्कैम, ऑनलाइन इन्वेस्टमेंट स्कैम) को मिलाकर चल सकते हैं। उदाहरण के लिए एक केस में ठग खुद को IMF या RBI का अधिकारी बताते हुए विदेश से भेजे पैकेट के नाम पर पैसे ऐंठ चुके हैंhindustantimes.com।
सरकार और साइबर सेल ने बताया है कि अपराधी विदेशी बेस्ड कॉल सेंटर से ऐसे कॉल करते हैं, इसलिए उन नंबरों को पहचानना मुश्किल होता है। फिर भी, अगर कॉल अनजान लगे या सवालों के जवाब में तुरंत पैसा देने को कहा जाए, तो बहुत सावधान हो जाना चाहिए। याद रखें, कोई भी सरकार या पुलिस अधिकारी फोन करके अचानक ऑनलाइन कार्रवाई नहीं करताindiatoday.inlivehindustan.com।
भारत में आंकड़े और रुझान
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2022 में इस तरह के 39,925 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें कुल नुकसान ₹91.14 करोड़ बताया गयाbusiness-standard.com। 2024 में ये मामले लगभग तीन गुना बढ़कर 1,23,672 हो गए और धोखाधड़ी की राशि बढ़कर ₹1935.51 करोड़ हो गईbusiness-standard.com। सिर्फ 2025 की पहली दो महीनों (जनवरी-फरवरी) तक 17,718 मामले और ₹210.21 करोड़ की ठगी दर्ज की गई हैbusiness-standard.com।
इसके अलावा साल 2024 की पहली तिमाही में ही डिजिटल अरेस्ट स्कैम में लोगों का ₹120.3 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था, जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ में बतायाtimesofindia.indiatimes.com। आंकड़ों से यह भी सामने आया कि लगभग 46% अपराध भारत के बाहर बैठे सिंडिकेट (जैसे म्यांमार, लाओस) से संचालित थे। हालांकि डिजिटल अरेस्ट के लिए अलग से कोई सरकारी श्रेणी नहीं बनती, मगर राष्ट्रीय साइबर क्राइम पोर्टल पर रिपोर्ट कराए गए इन मामलों का आधार ये आंकड़े हैं।
यह बढ़ती प्रवृत्ति चिंताजनक है। इसके पीछे सोशल मीडिया पर जागरूकता कम होना और टेक्नॉलजी का विकास दोनों भूमिका निभा रहे हैं। लोग तकनीक-ज्ञानी होने पर भी अक्सर इन क्रिमिनलों की चालों से चूक जाते हैं। उपरोक्त आँकड़े दिखाते हैं कि डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड सिर्फ वृद्ध या तकनीक में नया सीखने वालों का नहीं, बल्कि कार्यरत प्रोफेशनल्स को भी निशाना बना रहा है।
सरकार और साइबर पुलिस की चेतावनियाँ
सरकार और कानून-व्यवस्था से जुड़े विभाग लोगों को इस स्कैम के प्रति सतर्क करने के लिए लगातार अलर्ट जारी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में डिजिटल अरेस्ट स्कैम को लेकर चेताया और कहा कि एक तिमाही में देशवासियों का ₹120.3 करोड़ का नुकसान हुआtimesofindia.indiatimes.com। उन्होंने नागरिकों को अवांछित कॉल पर व्यक्तिगत जानकारी न देने, संदिग्ध नंबरों से जुड़े लिंक पर क्लिक न करने और आधिकारिक चैनलों से पुष्टि करने के निर्देश दिएtimesofindia.indiatimes.comtimesofindia.indiatimes.com।
गृह मंत्रालय के अंतर्गत आई4सी (Indian Cyber Crime Coordination Centre) ने इस समस्या पर विशेष ध्यान दिया हैpib.gov.in। सरकार ने अखबार, सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाया हैpib.gov.in। साथ ही फ़र्जी कॉल ब्लॉक करने के लिए दूरसंचार कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय कॉल्स के स्पूफिंग (भारतीय नंबर दिखाकर विदेशी कॉल) को रोकने के निर्देश जारी किए गए हैंpib.gov.in।
साइबर पुलिस भी लगातार लोगों को सचेत कर रही है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि कोई भी जांच एजेंसी वीडियो कॉल पर पूछताछ नहीं करतीlivehindustan.com। न ही पुलिस या CBI अचानक कोर्ट-आर्डर दिखाकर रुपये की मांग करती है। साइबर सेल ने पंजाब में एक केस में कहा कि डिजिटल अरेस्ट कोई वैध प्रक्रिया नहीं है, पूरी तरह ठगी है। विभिन्न राज्यों के पुलिस कमिश्नरों ने भी प्रेस नोट जारी कर कहा कि अगर कॉल में राज्य/केंद्र सरकार के अधिकारियों का नाम लिया जाए तो भी सतर्क रहें, और फोन काटकर स्थानीय थाने या helpline पर तुरंत शिकायत करें।
विभिन्न माध्यमों (जैसे NPCI, RBI आदि) से भी सलाह दी जाती है कि अगर UPI या बैंक कॉल में डिजिटल अरेस्ट की बात हो तो तुरंत बैंक की आधिकारिक वेबसाइट या कस्टमर केयर से पुष्टि करें। NPCI ने भी फर्जी कॉल से बचने की एडवाइजरी जारी की है जिसमें कहा गया है कि ऐसी कॉल कभी खुद भारतीय बैंक या NPCI से नहीं होतीbusiness-standard.com।
अगर कोई फँस जाए तो क्या करें (Step-by-step Guide)
- फोन तुरंत काटें: किसी भी अनजान नम्बर से आधिकारिक दिखने वाली कॉल आते ही शांत रहें और तुरंत कॉल काट दें। सवाल जवाब में उलझने से बचें।
- सबूत इकट्ठा करें: कॉलर का नंबर नोट करें, स्क्रीनशॉट या ऑडियो रिकॉर्डिंग (अगर संभव हो) लें। स्क्रीनशॉट लेने पर कॉलर को झूठ पकड़ में आएगी।
- नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन (1930) पर शिकायत करें: इसके बाद तुरंत हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करके पूरे मामले की जानकारी देंndtv.in। वे आपको आगे की प्रक्रिया बता देंगे।
- सरकारी पोर्टल पर कंप्लेंट दर्ज करें: https://cybercrime.gov.in (नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल) पर लॉग इन करके डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड की शिकायत दर्ज करेंndtv.in। यह सरकारी रिकॉर्ड बनाता है जिससे एजेंसियां सक्रिय हो सकती हैं।
- नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करें: अपने नज़दीकी साइबर/क्राइम ब्रांच पुलिस स्टेशन में घटना की लिखित शिकायत देंndtv.in। लिखित में सबकुछ विस्तार से बताएं।
- बैंक को सूचित करें: जिस खाते/UPI से पैसे ट्रांसफर हुए हों, बैंक को तुरंत कॉल करें और अकाउंट फ्रीज़ करने को कहेंndtv.in। बैंक भी संबंधित खाते में हो रही गतिविधि को जांच में डाल सकता है।
- अपने जानकारों को बताएं: परिवार के सदस्यों, मित्रों को स्थिति की जानकारी दें ताकि वे सतर्क रहें। अकेले स्थिति से निपटने की कोशिश न करें।
- समय न गवाएँ: विशेषज्ञ कहते हैं कि धोखाधड़ी के तुरंत बाद (24-28 घंटे के भीतर) शिकायत दर्ज कराने पर ठगे पैसे वापस पाने की संभावना बढ़ जाती हैndtv.in। इसलिए जितनी जल्दी हो सके कार्रवाई करें।
- ऑनलाइन खातों के पासवर्ड बदलें: यदि कोई ऑनलाइन बैंकिंग या ई-वॉलेट यूज़ किया तो उसका पासवर्ड तुरंत बदल दें। दो-कारक प्रमाणीकरण (2FA) चालू करें।
- धैर्य रखें: शिकायत के बाद भी रकम तुरंत वापस न मिले तो निराश न हों। जांच में वक्त लगेगा, लेकिन सतर्कता रखने से आगे के नुकसान रोके जा सकते हैं।
इन स्टेप्स का पालन करके पीड़ित व्यक्ति ठगी से हुए नुकसान को कम कर सकता है और जालसाजों की पहचान में भी मदद कर सकता है। सबसे महत्वपूर्ण है घबराना नहीं और तुरंत सही अधिकारियों से संपर्क करना।
फर्जी बनाम असली कॉल्स की पहचान
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड में मुख्य तौर पर यही अंतर होता है कि असली अधिकारी कभी भी फोन पर सीधे पैसे नहीं मांगते। असली कानूनन प्रक्रिया में किसी भी पुलिस, CBI या ED वाले अधिकारी की शिकायत/नोटिस लिखित आती है, वह भी कोर्ट या थाने के लेटरहेड पर। कोई भी अधिकारी वीडियो कॉल पर आपको घंटों तक घर में कैद करने या किसी लिंक पर क्लिक करने के लिए नहीं कहेगाindiatoday.inlivehindustan.com।
कुछ टिप्स से आप फर्जी कॉल पहचान सकते हैं:
- अनजान नंबर/विदेशी नंबर: यदि कॉल +959, +856 जैसे कोड से आ रही है (म्यांमार/लाओस), लेकिन आपको भारतीय अधिकारी बता रहा है, तो यह स्पूफ कॉल हो सकती है।
- तनाव–पूर्ण भाषा: अधिकारी वास्तविक में शांति से बात करते हैं, लेकिन ठग डराते-धमकाते हैं। “एक घंटे में गिरफ्तार कर लूंगा” जैसी बातें झूठी होती हैं।
- कोई जानकारी पे न देना: कोई अधिकारी कभी भी आपकी बैंक डीटेल, पासवर्ड, OTP नहीं मांगेगा। यदि ऐसे सवाल पूछे जाएं तो फर्जी कॉल समझना चाहिएindiatoday.in।
- खुद से कॉल बैक करना: यदि शक हो तो उस सरकारी विभाग के आधिकारिक नंबर पर खुद कॉल करके पूछें (सरकार की वेबसाइट या पुलिस कंट्रोल रूम). सच तो उसी में मिलेगा।
- “डिजिटल अरेस्ट” शब्द: यह शब्द खुद अपराधियों ने गढ़ा है, इसका कानून में कोई अस्तित्व नहींindiatoday.in। यदि आपको यह शब्द सुनने को मिले, समझ जाइए पूरी कॉल धोखा है।
- दो–दो अधिकारियों की उपस्थिति: डिजिटल अरेस्ट में कई अफसरों की एक ही समय पर कॉल आती हैं (SI, DCP, ED ऑफिसर इत्यादि), असल में ऐसा नहीं होता।
जब भी कोई कॉलिंग अधिकारी सरकारी-सा दिखे, जो अचानक पैसा या कनफर्मेशन मांगे, तुरन्त कॉल समाप्त कर दें और पुलिस/साइबर हेल्पलाइन पर जानकारी दें। याद रखें, वास्तविक कानून प्रवर्तन अधिकारी फोन पर कोई वैधानिक कार्रवाई शुरू नहीं करतेindiatoday.inlivehindustan.com।
डिजिटल सुरक्षा के उपाय (कम से कम 10 टिप्स)
- जानकारी सत्यापित करें: किसी भी कॉल या संदेश में अपनी व्यक्तिगत जानकारी या बैंक विवरण देने से पहले कॉलर की पहचान जाँचेhindustantimes.comtimesofindia.indiatimes.com। असली अधिकारियों के नाम, बैज नंबर या विभागीय ईमेल को खुद चेक करें।
- जानकारियों को गुप्त रखें: ओटीपी, पासवर्ड, बैंक/क्रेडिट कार्ड की जानकारी किसी भी कॉलर को न बताएंhindustantimes.com। असली बैंक वाले भी ऐसा नहीं करते।
- संदिग्ध लिंक और विज्ञापनों से बचें: फेसबुक/इंस्टाग्राम पर दिखने वाले संदिग्ध निवेश या कानूनी सलाह वाले विज्ञापनों पर क्लिक न करेंhindustantimes.com। ये अक्सर फ़िशिंग लिंक्स होते हैं।
- सॉफ्टवेयर अपडेट रखें: अपने मोबाइल और कंप्यूटर का ऑपरेटिंग सिस्टम तथा एंटीवायरस हमेशा अपडेट रखें। इससे हैकर्स का माइक्रोफोन या मैलवेयर अटैक कम होता है।
- मजबूत पासवर्ड और 2FA का उपयोग: बैंकिंग या ईमेल अकाउंट के लिए स्ट्रॉंग पासवर्ड बनाएं और दो-कारक प्रमाणीकरण (2FA) चालू रखें।
- विश्वसनीय मदद लें: शंकित कॉल आने पर अपने परिवार या टेक-सेवियों से तुरंत सलाह लें। अकेले निर्णय न लें।
- पुलिस को रिपोर्ट करें: जैसाकि बतौर कदम है, साइबर क्राइम पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) पर रिपोर्ट दर्ज कराएं या 1930 कॉल करेंndtv.in। जितनी जल्दी पुलिस/साइबर सेल को खबर होगी, आपकी सुरक्षा उतनी ही तेज़।
- स्वयं की जागरूकता बढ़ाएं: डिजिटल ठगी के बारे में जितना हो सके जानकारी रखें। ऑनलाइन कैसा फ्रॉड होता है, जागरूक वार्तालाप समूहों या ब्लॉग से सीखें। जितना पता होगा, उतना सतर्क रह सकेंगे।
- प्रोफ़ाइल सेटिंग्स सुरक्षित रखें: सोशल मीडिया पर पर्सनल जानकारी (जन्मदिन, मोबाइल नंबर) सार्वजनिक न रखें। अपराधी इनसे आपकी पहचान बना सकते हैं।
- शांत दिमाग रखें: धोखेबाज आपकी भावनाओं को भड़का कर काम करवाना चाहते हैं। कॉल पर गुस्सा या डरकर निर्णय न लेंtimesofindia.indiatimes.com। शांत रहें, और समय लेकर सतर्कता बरतें।
इन उपायों से आप खुद को डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड और अन्य साइबर ठगी से बचा सकते हैं। हमेशा याद रखें कि आपका सतर्क रहना ही पहला बचाव हैhindustantimes.comtimesofindia.indiatimes.com।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड क्या है?
जवाब: यह एक साइबर ठगी है जिसमें अपराधी कॉल या मैसेज करके खुद को पुलिस/सीबीआई/ईडी का अधिकारी बताकर आपको किसी अपराध के झूठे आरोपों में फंसाते हैं। फिर वे आपको “डिजिटल गिरफ्तारी” की धमकी देते हुए पैसे या निजी जानकारी देने के लिए मजबूर करते हैंtimesofindia.indiatimes.comindiatoday.in।
2. क्या कोई सरकारी अधिकारी कॉल पर डिजिटल अरेस्ट की बात करता है?
जवाब: बिलकुल नहीं। भारतीय कानून में “डिजिटल अरेस्ट” कोई मान्यता प्राप्त प्रक्रिया नहीं हैindiatoday.in। कोई पुलिस या सरकारी अफसर अचानक फोन करके अरेस्ट नहीं करता। अधिकतर ऐसे कॉल फर्जी साबित होते हैं। हमेशा याद रखें कि असली जांच एजेंसियाँ फोन पर सीधे पैसा नहीं मांगतीlivehindustan.comindiatoday.in।
3. ऐसे फर्जी कॉल कैसे पहचानें?
जवाब: फर्जी कॉल में अक्सर आरोप बहुत बड़ा बताया जाता है (जैसे 5038 करोड़ का घोटालाaajtak.in) और तुरंत पैसे देने को कहा जाता है। वहीं असली अधिकारी शालीन होते हैं और आधिकारिक पत्र देकर नोटिस भेजते हैं। यदि कॉलर निजी जानकारी या बैंक डिटेल्स मांग रहा है, तो यह फ्रॉड हैindiatoday.in। कॉल का देश-विदेश पता देखें और संदिग्ध शब्द पर ध्यान दें।
4. अगर मुझे डिजिटल अरेस्ट कॉल आया तो मैं क्या करूं?
जवाब: सबसे पहले कॉल तुरंत काट दें और कोई जानकारी साझा न करें। फिर हेल्पलाइन 1930 पर तुरंत कॉल करके शिकायत करेंndtv.in। अपने नज़दीकी साइबर पुलिस स्टेशन में लिखित केस दर्ज करवाएंndtv.in और बैंक से संपर्क करके खाते को फ्रीज़ करने को कहेंndtv.in। जितनी जल्दी रिपोर्ट करेंगे, उतना बेहतर है।
5. क्या ठगे पैसे वापस मिल सकते हैं?
जवाब: ऐसा हो सकता है, लेकिन आसान नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, जितनी जल्दी शिकायत दर्ज कराते हैं, पैसे वापस मिलने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती हैndtv.in। अगर 24–48 घंटे के भीतर पुलिस या बैंक को जानकारी मिल जाए, तो वे ट्रांजेक्शन को रोकने की कोशिश कर सकते हैं।
6. किसे तुरंत रिपोर्ट करना चाहिए?
जवाब: फोन काटते ही सबसे पहले नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करेंndtv.in। इसके बाद स्थानीय साइबर क्राइम पोर्टल (cybercrime.gov.in) पर कंप्लेंट दर्ज करें। इसके अलावा अपने नज़दीकी पुलिस स्टेशन में भी शिकायत दें। यदि संभव हो, तो बैंक को भी तुरंत सूचना दें ताकि खाते को ब्लॉक किया जा सकेndtv.in।
7. क्या डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के खिलाफ कोई कानून है?
जवाब: डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड सीधे तौर पर किसी विशेष धारा में नहीं आता क्योंकि यह अलग से परिभाषित नहीं है। परन्तु यह धोखाधड़ी (IPC की धारा 420), आपराधिक धमकी (अपराध संहिता की धारा 503) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराओं का उल्लंघन हो सकता है। इसलिए साइबर सेल इनमें दर्ज करके मामले की तफ्तीश करती है।
8. डिजिटल अरेस्ट स्कैम के बारे में सरकार ने क्या कहा है?
जवाब: सरकार ने कई चेतावनियाँ जारी की हैं। प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में इस धोखाधड़ी पर खास तौर से अलर्ट जारी किया थाtimesofindia.indiatimes.com। गृह मंत्रालय और साइबर सेल ने प्रेस रिलीज जारी की है कि सभी ध्यान दें, कोई भी पुलिस या बैंक अधिकारी फोन पर रुपये नहीं लेताpib.gov.inlivehindustan.com। मीडिया और पुलिस अब नियमित रूप से इस स्कैम के बारे में जागरूकता बढ़ाते रहते हैं।
9. बैंक और तकनीकी सुरक्षा के लिए क्या सावधानियाँ बरतें?
जवाब: अपने बैंकिंग विवरण कभी फोन पर शेयर न करें। बैंक OTP केवल खुद के लिए रखें। अपने मोबाइल/कंप्यूटर पर एंटीवायरस रखें और सॉफ्टवेयर अपडेट रखें। बैंक की आधिकारिक ऐप और वेबसाइट का ही इस्तेमाल करें। किसी भी संदिग्ध लिंक पर क्लिक न करें। दो-कारक प्रमाणीकरण (2FA) हमेशा चालू रखें।
10. डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड से कैसे बचा जा सकता है?
जवाब: सबसे बड़ा बचाव जागरूकता है। ऐसी कॉल आने पर किसी और से सलाह लें, तुरंत तलाशी अभियान (panic) में पैसे ट्रांसफर न करें। जांच एजेंसियों को कॉल न करें, बल्कि वे खुद आपको फोन नहीं करेंगे। अपने परिवार के बुजुर्गों को भी इस घोटाले के बारे में बताएं। डिजिटल डिवाइस पर सुरक्षित व्यवहार (जैसे, अनजान ऐप या लिंक न खोलना) अपनाएँ। हां, अगर कुछ गलत लगता है तो हमेशा तथ्यों को जांचकर ही आगे बढ़ें।
निष्कर्ष
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड एक जानलेवा साइबर खतरा है जो देशभर में बढ़ रहा है। अपराधी बड़ी चालाकी से डर, गुमराह करने वाली कहानियाँ और आधिकारिक दिखने वाले छल-कपट का सहारा लेते हैं। इससे बचने का मूल मंत्र है सतर्कता और सावधानी। याद रखें, आपके साथ कोई भी कानून एजेंसी बातचीत बिना लिखित नोटिस के फोन पर नहीं करेगीindiatoday.inlivehindustan.com। जब भी कोई कॉल संदिग्ध लगे, तुरंत कॉल काटकर पुलिस या साइबर हेल्पलाइन से संपर्क करेंndtv.inndtv.in।
इस प्रकरण से हमें यह सीखना चाहिए कि हमें अपनी डिजिटल सुरक्षा पर हमेशा नजर रखनी है और नए-नए स्कैम के बारे में अपडेट रहना है। ऐसे फ्रॉड के बारे में जागरूकता ही सबसे बड़ी सुरक्षा कवच है। सतर्क रहें, सावधान रहें – और अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखें।